23 Golden Rule to the analysis of birth chart [Hindi]

जन्म पत्रिका का विश्लेषण(analysis of birth chart) कई तरीको से किया जाता है, क्योंकि जन्मपत्रिका के विश्लेषण के लिए कई तरह की सिस्टम मौजूद है| आज के इस लेख में हम आपको सर्व सामान्य नियम बतायेंगे जो व्यापक रूप से प्रयोग में लिए जाते है| जन्मपत्रिका का विश्लेषण करना वेसे तो एक कठिन कार्य है लेकिन अगर सही नॉलेज होने पर आसानी से इसे किया जा सकता है|

किसी भी जन्म पत्रिका से फलकथन कहने के लिए ज्योतिष विषय का गहरा ज्ञान होना आवश्यक है| कई लोग ऐसे होते है जिन्हें ज्योतिष में कोनसा गृह क्या दर्शाता है और कोनसी राशि क्या दर्शाती है उसे समज आता है| लेकिन उसे फलादेश में प्रयोग में कैसे लिया जा सकता है उसे नहीं समज पाते और इसी की वजह से वे analysis of birth chart सही से नहीं कर सकते| अगर आप analysis of birth chart सही से करना चाहते है तो आपको निचे दिए गए सभी नियम को अच्छे से समजना होंगा ताकि जन्मपत्रिका का विश्लेषण सही से कर सके|

अब हम बारी बारी सभी नियमो को समजते है|

23 rule to the analysis of Birth chart

जन्म पत्रिका का एनालिसिस कराने के लिए निचे दिए गए सभी सूत्रों को ध्यान में रखे ताकि सही फल कथन किया जा सके|

Analysis of birth chart Rule No. 1: जन्म पत्रिका से फल कथन के लिए तिन तरह के लग्न को सबसे अधिक तवज्जो दिया जाता है| जन्म लग्न, चन्द्र लग्न, सूर्य लग्न| जन्म पत्रिका के विश्लेषण में सभी को महत्व दिया जाता है| किसी भी फल कथन के लिए सभी को अवश्य चेक करे और सभी में एक ही तरह का विश्लेषण आता है तो यह अवश्य फलीभूत होगा|

जन्म लग्न से शरिर, चन्द्र लग्न से मन की स्थिति, और सूर्य लग्न से आत्मशक्ति को देखा जा सकता है| यह आपकों देश काल और पात्र में भी एनालिसिस करने में अच्छे से उपयोग में आएगा|

Analysis of birth chart Rule No. 2: किसी भी राही या गृह पर उससे दशवे भाव में बेठे गृह और राशी का प्रभाव पड़ता है और विश्लेषण में इसे अवश्य देखे| कभी कभी यह फल को बदलने की क्षमता रखता है|

Analysis of birth chart Rule No. 3: अकेले राहू की दृष्टि का प्रभाव और युति के साथ बेठे राहू का प्रभाव अलग होगा| युति में बेठे राहू के प्रभाव में साथ में बेठे ग्रह का प्रभाव् देखने को मिलेगा|

Analysis of birth chart Rule No. 4: उपरोक्त नियम केतु के सन्दर्भ में भी लागू होता है| साथ ही केतु अकेला होने पर अधिकतर समय में अच्छा फल नहीं देता है| अकेले केतु को विष्फोटक माना गया है| स्वराशी स्थित ग्रह के साथ केतु शुभ फल देता है|

Analysis of birth chart Rule No. 5: कभी भी किसी भी ग्रह के अकेले का फल नहीं देखा जाता की वह कैसा फल देंगा| गृह अगर कोई भाव में बेठा है तो उस भाव के साथ उस राशि का भी प्रभाव अवश्य देखना चाहिए जहा वह ग्रह बेठा है|

Analysis of birth chart Rule No. 6: फल कथन और एनालिसिस करने से पहले ग्रह और राशि के तत्वों को समजना चाहिए| राशी के तत्वों को समजने के लिए निचे दिया गया कोष्टक समजे|

राशी तत्व
मेष राशी, सिंह राशि , धनु राशी अग्नि तत्व
वृषभ राशी, कन्या राशी, मकर राशीपृथ्वी तत्व
मिथुन राशी, तुला राशि, कुम्भ राशी जल तत्व
कर्क राशि, वृश्चिक राशी, मीन राशीवायु तत्व

Analysis of birth chart Rule No. 7: जन्म पत्रिका में धन के सम्बंधित कभी भी भविष्य कथन करना हो तो पहले भाव, चोथेभाव, दशवेभाव, नौवे भाव, और ग्यार्वे भाव को ध्यान में लेना चाहिए|

Analysis of birth chart Rule No. 8: जन्म पत्रिका में तीसरा भाव, आठवा भाव और बारहवा भाव अगर अधिक शक्ति शाली है अन्य भावो की तुलना में तब जन्म पत्रिका अशुभ फल अधिक देती है| और अन्य भाव अधिक प्रबल होने पर जन्म पत्रिका शुभ फल देती है|

Analysis of birth chart Rule No. 9: शुभ ग्रह अस्त होकर भी बुरा फल प्रदान करता है जबकि अशुभ ग्रह अच्छे ग्रह के साथ युति में आकर और योग कारक से जुड़ कर अच्छा फल दे सकते है|

Analysis of birth chart Rule No. 10: जब भी कोई भाव किसी ग्रह से देखा नहीं जाता हो या कोई भी ग्रह नहीं बेठा तब उस भाव का फल माध्यम प्राप्त होता है|

Analysis of birth chart Rule No. 11: शुभ ग्रह, योगकारक ग्रह जहा पर भी बैठते है उस भाव का फल वृद्धि करते है|

Analysis of birth chart Rule No. 12: वर्गोत्तम हुआ ग्रह स्वग्रही के माफक बलि होता है और अधिक तौर पर शुभ फल देता है| उच्च का ग्रह नवमांश में नीच का होने पर अशुभ फल प्राप्त कराता है|

Analysis of birth chart Rule No. 13: जब भी कोई भी भाव अपने ही स्वामी से दृष्ट हो तब उस भाव का फक शुभ मिलता है|

Rule No. 14: अगर किसी भाव का स्वामी अन्य भाव में गया हो और उस भाव का स्वामी दुस्थान में गया हो तो दोनों भाव का फल अच्छा नहीं मिलता है|

Rule No. 15: केंद्र और त्रिकोण के भाव का सम्बन्ध अच्छा और योग कारक माना गया है| यह राजयोग का फल प्रदान करता है| दोनों भावो के स्वामी की मज्बूओत स्थिति आवश्यक है|

Rule No. 16: छट्ठे, आठवे, और बाहरवे भाव के स्वामी इन में से ही किसी एक भाव में जाए तब ग्रह का फल अशुभ नहीं मिलता है| विपरीत राजयोग का निर्माण होता है|

Rule No. 17: किसी भी भाव का स्वामी उनसे बारहवे भाव में स्थित हो तो उसका फल अधिकतर किस्सों में शुभ नहीं होता है|

Rule No. 18: अनिष्ट भाव मा शुभ ग्रह स्थित होने पर ग्रह का फल कम मिलता है लेकिन भाव का फल शुभ मिलता है|

Rule No. 19: नैसर्गिक शुभ ग्रह दो केंद्र स्थान के स्वामी होने पर केन्द्राधिपति दोष लगता है| केन्द्राधिपतिदोष के कारण ग्रह के शुभत्व में कमी आती है लेकिन कभी भी अशुभ फल नहीं देता है|

Rule No. 20: तीसरे भाव से, छट्ठे भावका स्वामी, और छट्ठे भाव से ग्यार्वे भाव स्वामी बलि होता है| उसी तरह प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में होता है|

Rule No. 21: दुसरे भाव का स्वामी और बाहरवे भाव का स्वामी कभी भी अशुभ या शुभ नही होते है , उनकी दूसरी राशि कहा स्थित है वही से सही अंदाजा लगाया जा सकता है| चन्द्र और सूर्य तटस्थ के रूप में कार्य करते है|

Rule No. 22: त्रिकोण भाव के स्वामी हमेशा को हमेशा ही शुभ माना जाता है, सिर्फ अष्टम के ह ही उसे सुभ नहीं माना जाता|

Rule No. 23: केंद्र भाव का स्वामी त्रिकोण और त्रिकोण भाव का स्वामी केंद्र में स्थित होने पर दोनों शुभ फल देते है| और वह बल भी प्राप्त करते है|

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